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मंगलवार, 28 अगस्त 2012

पत्‍नी ने किया विरोध बिना इजाजत स्‍पर्म डोनेशन का

 लंदन। एक ब्रिटिश महिला ने ह्यूमन फर्टिलाइजेशन एंड एंब्रयोलॉजी अथॉरिटी (एचएफईए) से स्पर्म को 'वैवाहिक संपत्ति' घोषित करने की मांग की है। दरअसल, महिला के पति ने उसे बगैर बताए एक क्लिनिक में स्पर्म डोनेट किए थे। ब्रिटिश अखबार 'डेली मेल' ने इस महिला की पहचान सार्वजनिक नहीं की है। कहा जा रहा है कि महिला को इस बात का डर है कि पति के स्पर्म से पैदा होने वाले बच्चे उसके बेटे के सौतेले भाई या बहन होंगे और वे एक दिन पति से जुड़ कर उसके परिवार को परेशानी में डाल सकते हैं। महिला ने ह्यूमन फर्टिलाइजेशन एंड एंब्रयोलॉजी अथॉरिटी सेस्पर्म डोनेशन के लिए गाइडलाइंस बनाने की मांग की है।
गौरतलब है कि वर्ष 2005 में ब्रिटेन की एक कोर्ट ने आदेश दिया था कि एक स्‍पर्म डोनर सिर्फ 10 परिवारों को ही स्पर्म डोनेट कर सकता है। इतना ही नहीं, यदि डोनर बच्‍चा बालिग होने के बाद अपने बॉयलॉजिकल पिता के बारे में जानना चाहे तो उसे बताना होगा। पिता के बारे में जानना उसका अधिकार होगा। भारत में यदि कोई स्‍पर्म डोनेट करना चाहे तो उसे मात्र दो सौ रुपये ही मिलते हैं। जबकि ब्रिटेन जैसे मुल्‍कों में स्‍पर्म डोनेशन का 2500 रुपये तक मिल जाता है।
स्‍पर्म डोनेशन की प्रक्रिया: बिजनेस करने वाली कंपनियां कॉलेज स्टूडेंट्स के साथ वर्कशॉप करती हैं। काउंसलिंग करती हैं। स्पर्म डोनेशन के सामाजिक पहलू के बारे में बताती हैं। जो स्टूडेंट तैयार होते हैं उन्हें मेडिकल टेस्ट देना होता है। अगर उन्हें कोई यौन या दूसरी बीमारी नहीं है, तो एक निश्चित अवधि का कॉन्ट्रैक्ट भरवाया जाता है। फिर उन्हें हफ्ते में दो बार कंपनी की लैब आकर स्पर्म डोनेट करना होता है। ब्लड डोनेशन की तरह यह एक सोशल कॉज है, इसके बदले कोई पैसा नहीं दिया जाता। स्टूडेंट दूर से आता है तो कंपनी ट्रांसपोर्ट खर्च दे देती हैं। डोनर से इकट्ठा करने के बाद स्पर्म को ‘-196 डिग्री सेल्सियस’ पर लिक्विड नाइट्रोजन में स्टोर किया जाता है। डोनर से स्‍पर्म इकट्ठा करने वाली कंपनियों के क्लाइंट आम तौर पर डॉक्टर या हॉस्पिटल होते हैं। उनके पास पुरुष में कम स्पर्म काउंट वाले केस आते हैं। डॉक्टर कंपनियों को जरूरतमंद के वजन, लंबाई और स्किन कलर जैसी जानकारी भेजते हैं। कंपनियां मेल खाता सैंपल डॉक्टरों को भेजती हैं। कंपनियां एक सैंपल 650 रुपए में बेचती हैं, डॉक्टर इसे 900 से 1200 रुपए में पेशेंट को देते हैं। डोनर की पहचान गुप्त रखी जाती है। उससे यह साइन भी करवाया जाता है कि अगर बाद में पता भी चल गया, तो उस औलाद पर डोनर का कोई हक नहीं होगा।
बिना इजाजत पति के स्‍पर्म डोनेशन के विरोध में आवाज उठाने वाली ब्रिटिश महिला की पहचान गुप्‍त रखी गई है। यह महिला बिजनेस करती है। उसका कहना है कि मेरे पति ने बिना मेरी मर्जी जाने अपना स्‍पर्म डोनेट कर दिया। जब मैंने क्लिनिक से संपर्क किया तो उनकी ओर से भी मुझे नहीं बताया गया कि वे मेरे पति का स्‍पर्म यूज कर रहे हैं। मुझे इस बात का डर है कि इस स्‍पर्म से होने वाला बच्‍चा बालिग होने के बाद मेरे परिवार, मेरी जिंदगी और मेरे बच्‍चों के लिए कोई मुसीबत न खड़ी कर दे। इस महिला का यह भी कहना है कि मेरे पति के स्‍पर्म से पैदा होने वाले बच्‍चों से मेरा इमोशनल अटैचमेंट होगा। मैं चाह कर भी उसे दूर नहीं कर पाऊंगी। इसलिए बिना पत्‍नी की सहमति के पति द्वारा स्‍पर्म डोनेट करने पर पाबंदी जरूरी है। इस महिला ने डायने ब्‍लड से भी मुलाकात की। ब्‍लड ने ही इस महिला के पति के स्‍पर्म से दो बच्‍चों को जन्‍म दिया है। उनके पति की मौत काफी पहले हो चुकी है। वह इन बच्‍चों के सहारे अपने पति की संपत्ति की कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। ब्रिटेन में स्‍पर्म डोनर को किसी प्रकार का भुगतान नहीं किया जाता है लेकिन उसे यात्रा और अन्‍य भुगतान के रूप में कुछ राशि दी जा सकती है। डोनर लाईसेंस प्राप्‍त क्लिनिक के माध्‍यम से ही स्‍पर्म डोनेट कर सकता है। स्‍पर्म डोनेट करने वाले आदमी की मर्जी के बिना उसका यूज नहीं किया जा सकता है। वह ऐन वक्‍त पर स्‍पर्म के यूज से मना कर सकता है। एचईएफए बोर्ड के पूर्व सदस्‍य और लंदन के होमर्टन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के डॉक्‍टर गुलाम बहादुर इस बात से खुश हैं कि कम से कम ऐसे इश्‍यू को उठाया तो गया। वह कहते हें कि जो आदमी स्‍पर्म दे रहा है, उसका उसकी पत्‍नी और परिवार पर क्‍या असर पड़ रहा है, उसे पूरी तरह इग्‍नोर नहीं किया जा सकता है।
भारत में वर्ष 2008 में संसद में एक विधेयक लाया गया था। कृत्रिम रूप से बच्चे पैदा करने की तकनीक से जुड़ा यह विधेयक संसद में आज तक पारित नहीं हो पाया। इसमें इस क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए कुछ कानून सुझाए गए थे। डॉक्‍टर भी देश में ऐसे कानून की मांग करते हैं, जिससे स्‍पर्म डोनेशन के साथ आईवीएफ तकनीक पर भी ध्‍यान रखा जा सके। स्‍पर्म डोनेट करने वालों की सूची रखने के लिए एक केंद्रीय संस्था का गठन होना चाहिए जो एक कानून के तहत काम करे।
भारत में स्‍पर्म डोनेशन का मुद्दा फिल्‍म का सब्‍जेक्‍ट भी बना। इस विषय पर बनी फिल्म ‘विकी डोनर’ लोकप्रिय रही। इस फिल्‍म ने देश के युवाओं में कई चीजों की जिज्ञासा जगाई। पहली, स्पर्म डोनेशन क्या है? और कैसे होता है? इस सवाल को लेकर। दूसरा, हाल ही में खबरें आईं कि कुछ लड़कियां फिल्म के प्रॉड्यूसर जॉन अब्राहम के स्पर्म चाहती हैं। बदले में जॉन ने भी कहा था कि ऐसे तो ‘फादर ऑफ द नेशन’ हो जाऊंगा।
'विकी डोनर' फिल्‍म के हीरो आयुष्मान कहते हैं कि स्पर्म डोनेशन के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए और इसे वह पेशे के रूप में भी अपना सकते हैं। हमारे समाज में लोग इस बारे में बात नहीं करना चाहते मगर विदेशों में स्पर्म डोनेशन को बुरा नहीं मना जाता। अब हम आगे बढ़ रहे हैं ऐसे में हमें समय के साथ अपनी सोच भी बदलनी होगी और इससे किसी का नुकसान भी नहीं है। उनका कहना है कि उन्‍होंने असल जिंदगी में भी 2004 में रोडीज सीजन-2 की एक टास्क के लिए स्पर्म डोनेट किए हैं।
आपकी राय में क्‍या स्‍पर्म डोनेशन में पत्‍नी की मर्जी का खयाल रखना जरूरी है और स्‍पर्म को संपत्ति के रूप में ट्रीट किया जा सकता है? आप जो भी सोचते हों, नीचे कमेंट बॉक्‍स में टाइप कर सबमिट करें...

2 टिप्‍पणियां:

  1. स्‍पर्म डोनेशन करने में कोई बुराई नहीं है. मगर इस पर सरकार को दिशा-निर्देश बनाने की भी आवश्यकता है. कहीं महिला कानूनों की तरह से दुरूपयोग ना होने लग जाए. कल को स्पर्म से पैदा हुए बच्चे के अभिभावक संपत्ति के लालच में नए विवादों को जन्म देने लग जायेंगे.

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  2. रमेश जी में आपकी इस बात से सहमत नहीं हूँ कि सरकार को इसके लिए दिशा निर्देश बनाने चाइये क्योकि इससे सरकारी लोगो को और अधिक भ्रष्टाचार फ़ैलाने का मौका मिलेगा आज आप ही देख ले कि हमारे कानूनों कि आड़ में कितनी भ्रष्टता फैलती जा रही है आप खुद ही देख ले कि महिलाओ के लिए बनाये गए कानूनों में कितनी भ्रष्टता है क्योकि इस कानून कि आड़ में पुलिस पति से मुह भरकर पैसे वसूलती है और फिर भी अपनी वाह वाही के लिए पति को ही दोषी मन जाता है |.....

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