हम हैं आपके साथ

कृपया हिंदी में लिखने के लिए यहाँ लिखे

आईये! हम अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी में टिप्पणी लिखकर भारत माता की शान बढ़ाये.अगर आपको हिंदी में विचार/टिप्पणी/लेख लिखने में परेशानी हो रही हो. तब नीचे दिए बॉक्स में रोमन लिपि में लिखकर स्पेस दें. फिर आपका वो शब्द हिंदी में बदल जाएगा. उदाहरण के तौर पर-tirthnkar mahavir लिखें और स्पेस दें आपका यह शब्द "तीर्थंकर महावीर" में बदल जायेगा. कृपया "शकुन्तला प्रेस ऑफ इंडिया प्रकाशन" ब्लॉग पर विचार/टिप्पणी/लेख हिंदी में ही लिखें.

शनिवार, 22 सितंबर 2012

पत्‍नी को पगार देंगे, बर्खास्‍तगी का अधिकार भी चाहिए ?


नई दिल्ली : पत्नी को हर माह पति के वेतन में से एक हिस्सा देने के प्रस्तावित कानून के खिलाफ पुरुष संगठन सामने आ गए हैं। 'सेव फैमिली फाउंडेशन' ने केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ को पत्र लिखकर नए प्रस्ताव को तत्काल प्रभाव से रद्द करने की मांग की है। विभिन्न राज्यों के लगभग 40 पुरुष संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले फाउंडेशन ने इस प्रस्ताव को एकतरफा करार दिया है। संगठन ने इस मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी हस्तक्षेप करने की अपील की है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार बहुत जल्द एक ऐसा कानून लाने पर विचार कर रही है जिसके लागू होने के बाद हर पति के लिए अपनी पत्नी को प्रतिमाह एक तय वेतन देना अनिवार्य होगा। 

प्रस्ताव का विरोध करते हुए फाउंडेशन के संस्थापक सदस्य स्वरूप सरकार ने कहा, 'सरकार को जेंडर न्यूट्रल कानूनों को तरजीह देना चाहिए। ऐसा कोई कानून नहीं बनाना चाहिए जिससे समाज में विरोध पैदा हो। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय सिर्फ महिलाओं के हित की बात करते हुए प्रतिमाह वेतन की वकालत कर रहा है। लेकिन सरकार में कोई भी इस बात को मानने को तैयार नहीं है कि पुरुष अपनी पूरी तनख्वाह पत्नी को ही देता है।' स्वरूप सरकार ने आगे बताया कि उनके संगठन ने केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ को पत्र लिखकर नए प्रस्ताव को तत्काल प्रभाव से रद्द करने की मांग की है।

.. तो बर्खास्त करने का भी हो अधिकार

बेंगलुरू स्थित कॉन्फिडेयर रिसर्च में जेंडर स्टडीज विभाग के प्रमुख वीराज धूलिया का कहना है कि अगर केंद्र सरकार, पत्नियों को मासिक वेतन देने का कानून बनाती है तो फिर घर में ऑफिस की सभी शर्तें भी लागू होनी चाहिए। मसलन, पति घर में होने वाले सभी घरेलू काम की समीक्षा भी करे। अच्छे और बुरे काम के हिसाब से तनख्वाह में कटौती करे और अगर पत्नी सही काम नहीं करे तो उसे बर्खास्त भी कर सके। इसके अलावा मसौदे में यह जिक्र भी किया जाए कि पति अपनी पत्नी को कपड़े, घूमने-फिरने और सौंदर्य-प्रसाधन जैसे अन्य खर्च के लिए राशि देने को बाध्य नहीं होगा।

महिलाएं भी चाहती हैं बदलाव 

महिला अधिकारों पर काम करने वाली सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील बृंदा ग्रोवर का कहना है कि केंद्र सरकार को नए प्रस्ताव में पत्नी को वेतन की बजाए संपत्ति पर बराबर का अधिकार दिलवाने का कानून बनाना चाहिए। तनख्वाह दिलवाने का प्रस्ताव बेहतर सुनाई दे रहा है, लेकिन इससे पति के मालिक और पत्नी के नौकरानी होने जैसा भी अहसास होता है। महिला सशक्तीकरण पर काम करने वाली लेखिका सादिया देहलवी का कहना है कि सरकार पति को पत्नी के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट या पॉलिसी जैसे तरीकों से भी हिस्सेदारी दे तो महिलाओं को ज्यादा सामाजिक सुरक्षा मिल पाएगी। 

मंगलवार, 11 सितंबर 2012

कैसे पता लगाया जाए पत्नी वर्जिन है या नहीं

भारत में शादी से पहले सेक्स पर रूढ़ीवादी रवैया है, हालांकि शहरों और क़स्बों में इसके प्रति लचीला रूख़ सामने आ रहा है. एक भारतीय कंपनी ने दावा किया है कि वो योनि का ढीलापन ख़त्म करने वाली देश की पहली क्रीम बाज़ार में ला रही है, जिसके विज्ञापन के अनुसार महिलाएं एक बार फिर कौमार्य का अहसास कर पाएंगी. कंपनी का मानना है कि इससे महिलाओं का सशक्तिकरण होगा लेकिन आलोचक कह रहे हैं कि इससे उल्टे नारी सशक्तिकरण पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. ये एक बड़ा दावा है.
‘18 अगेन’ क्रीम के विज्ञापन में साड़ी पहने एक महिला नाच-गा रही है. विज्ञापन बॉलीवुड स्टाइल में है और महिला मैडोना का हिट गाना ‘आई फ़ील लाइक ए वर्जिन’ गुनगुना रही है. उसके सास-ससुर स्तब्ध हैं. जल्द ही महिला का पति भी नाच-गाने में शामिल हो जाता है. शुरू में नाक-भौं सिकोड़ती सास आख़िर में इस क्रीम को ऑनलाइन ख़रीदने की प्रक्रिया में दिखती है.
18 अगेन क्रीम को बनाने वाली मुंबई स्थित फ़ार्मा कंपनी अल्ट्राटेक के अनुसार भारत में ये उत्पाद पहली बार मिल रहा है. अल्ट्राटेक के मालिक ऋषि भाटिया कहते हैं कि करीब ढाई हज़ार रुपए में मिलने वाली ये क्रीम सोने की भस्म, एलो वेरा यानि घृतकुमारी, बादाम और अनार जैसे पदार्थों से बनी है. और इसके क्लीनिकल टेस्ट भी हो चुके हैं. ऋषि भाटिया कहते हैं, “ये एक अनूठा और क्रांतिकारी उत्पाद है जो महिलाओं के आत्मविश्वास को मज़बूत करने और उनके आत्मसम्मान को बढ़ाने में भी सहायता करता है. ” भाटिया कहते हैं कि 18 अगेन का लक्ष्य महिलाओं का सशक्तिकरण है. उनके मुताबिक ये उत्पाद कौमार्य बहाल करने का दावा नहीं कर रहा है बल्कि सिर्फ़ एक वर्जिन जैसे अहसास को दोबारा दिलाने की बात कह रहा है.
महिलाओं के समूह, कुछ डॉक्टर और सोशल मीडिया पर कई लोग कंपनी के प्रचार अभियान की कड़ी आलोचना कर रहे हैं. उनका कहना है कि ये उत्पाद उस भारतीय सोच का समर्थन करता है जिसमें शादी से पहले सेक्स को हीन नज़र से देखा जाता है और कुछ तो इसे ‘पाप’ भी क़रार देते हैं. नेशनल फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन वीमैन की एनी राजा कहती हैं, “इस तरह की क्रीम बिल्कुल बकवास है और इससे कुछ महिलाओं में हीन भावना भी आ सकती है. महिलाओं को विवाह तक वर्जिन क्यों रहना चाहिए? किसी पुरुष के साथ संभोग महिला का अपना अधिकार है लेकिन यहां समाज अब भी महिलाओं को दुल्हन बनने तक इंतज़ार के लिए कहता है. ” एनी राजा कहती हैं कि सशक्तिकरण से उलट ये क्रीम पितृसत्तात्मक समाज की उस मान्यता को मजबूत करेगी जिस के अनुसार हर पुरूष अपनी पहली रात एक वर्जिन पत्नी के साथ ही मनाना चाहता है. मुंबई मिरर और बैंगलोर मिरर समाचार पत्रों में सेक्स पर सलाह देने वाली कॉलम के लेखक गायनोकोलॉजिस्ट डॉक्टर महिंदा वत्स कहते हैं, “वर्जिन होने को अब भी बड़ी चीज़ माना जाता है. मुझे नहीं लगता कि इस सदी में ये धारणा बदलने वाली है. ” डॉ. वत्स ने सेक्स से संबंधित 30 हज़ार से अधिक प्रश्नों के उत्तर दिए हैं और वो कहते हैं कि उनसे बहुत से मर्द पूछते हैं कि ये कैसे पता लगाया जाए कि उनकी पत्नी वर्जिन है या नहीं. उनसे महिलाएं भी पूछतीं है कि वो अपने पतियों से कैसे छिपाएं कि वो वर्जिन नहीं हैं. डॉ. महिंदा वत्स कहते हैं, “हर पुरुष को आस होती है कि वर्जिन से शादी कर रहा है लेकिन कम से कम भारत के शहरों और क़स्बों में तो लड़कियां शादी से पहले संभोग कर रही हैं. ” वत्स कहते हैं कि कामकाजी महिलाओं में पुरुषों के साथ संबंधों के विषय में आत्मविश्वास आया है. एक वेबसाइट पर सेक्स संबंधी सेहत से जुड़ी सलाह देने वाली डॉ निसरीन नखोडा कहती हैं, “ये तो पक्का है कि भारत में अब पहले से कहीं ज़्यादा विवाह पूर्व सेक्स संबंध बन रहे हैं.” डॉ. नखोडा कहती हैं, “मुझे नहीं पता कि 18 अगेन क्या करेगी क्योंकि योनि को मांसपेशियां सुडौल बनाती हैं. पता नहीं एक क्रीम ये काम कैसे करेगी.” लेकिन वो मानती हैं कि ऐसी क्रीम भारत में ख़ूब कमाई कर सकती है क्योंकि हालात तो बदल रहे हैं लेकिन धारणाएं नहीं. पिछले साल इंडिया टुडे पत्रिका में छपे एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में सिर्फ़ पांच से एक व्यक्ति ही विवाह-पूर्व सेक्स या लिव-इन संबंध यानी बिना शादी के महिला और पुरुष के साथ रहने के पक्ष में था. जबकि एक चौथाई लोगों ने कहा कि उन्हें शादी से पहले सेक्स से गुरेज़ नहीं है बशर्ते से उनके परिवार में ना हो रहा हो. एक 26 वर्षीय वर्जिन महिला ने कहा, “हमें ये कहते हुए पाला जाता है कि सेक्स संबंध स्थापित करना भद्दा काम है. जब आप युवा हों तब बॉयफ़्रेंड का होना बहुत मुश्किल होता है. मेरे जिन दोस्तों के बॉयफ़्रेंड थे भी, उन्हें अपने परिवार से ख़ूब झूठ बोलना पड़ता था. ” 
एक अन्य 27 वर्षीय महिला, जिसने पहली बार 20 वर्ष की उम्र में सेक्स संबंध बनाए थे और जिसके अब तक तीन ऐसे पार्टनर रह चुके हैं, वो कहती हैं कि पुरूष महिलाओं पर मालिकाना हक़ जताना चाहते हैं. इस महिला के अनुसार कई पार्टनर के साथ संभोग करने वाली महिला को वेश्या समझे जाने का डर तो दुनिया के सभी समाजों मौजूद है. डॉक्टर नसरीन नखोडा कहती हैं, “भारतीय मानसिकता एक बेचैनी के दौर से गुज़र रही है. नई पीढ़ी ‘कूल’ बनाना चाहती है और वो शादी से पहले सेक्स को आज़माना चाहती है लेकिन उन्हें एक परंपरागत तरीके से बड़ा किया जा रहा है जहां शादी से पहले सेक्स एक पाप है. इससे कई युवाओं में असमंजस की स्थिति है.” योनि के ढीलेपन को दूर करने का दावा करने वाली क्रीम से पहले योनि की चमड़ी को गोरा करने वाली क्रीम पर भी विवाद हो चुका है. ये दोनों इस बात का उदाहरण हैं कि कैसे भारत में परंपरागत मूल्य नए विचारों से टकरा रहे हैं. महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाली एनी राजा कहती हैं कि ऐसे उत्पादों का उद्देश्य महिलाओं के व्यवहार और चेहरे-मोहरे का नियंत्रण पुरूषों को देना है. लेकिन 18 अगेन बनाने वाली कंपनी के ऋषि भाटिया कहते हैं कि इस बार में शोर-शराबा ग़ैर-ज़रूरी है. ऋषि भाटिया कहते हैं, “पुरूष सेक्स का मज़ा बढ़ाने के लिए कई उत्पादों का प्रयोग करते हैं, ये तो महिला के हाथ में संभोग का सुख बढ़ाने का ज़रिया मात्र है.”

मंगलवार, 28 अगस्त 2012

पत्‍नी ने किया विरोध बिना इजाजत स्‍पर्म डोनेशन का

 लंदन। एक ब्रिटिश महिला ने ह्यूमन फर्टिलाइजेशन एंड एंब्रयोलॉजी अथॉरिटी (एचएफईए) से स्पर्म को 'वैवाहिक संपत्ति' घोषित करने की मांग की है। दरअसल, महिला के पति ने उसे बगैर बताए एक क्लिनिक में स्पर्म डोनेट किए थे। ब्रिटिश अखबार 'डेली मेल' ने इस महिला की पहचान सार्वजनिक नहीं की है। कहा जा रहा है कि महिला को इस बात का डर है कि पति के स्पर्म से पैदा होने वाले बच्चे उसके बेटे के सौतेले भाई या बहन होंगे और वे एक दिन पति से जुड़ कर उसके परिवार को परेशानी में डाल सकते हैं। महिला ने ह्यूमन फर्टिलाइजेशन एंड एंब्रयोलॉजी अथॉरिटी सेस्पर्म डोनेशन के लिए गाइडलाइंस बनाने की मांग की है।
गौरतलब है कि वर्ष 2005 में ब्रिटेन की एक कोर्ट ने आदेश दिया था कि एक स्‍पर्म डोनर सिर्फ 10 परिवारों को ही स्पर्म डोनेट कर सकता है। इतना ही नहीं, यदि डोनर बच्‍चा बालिग होने के बाद अपने बॉयलॉजिकल पिता के बारे में जानना चाहे तो उसे बताना होगा। पिता के बारे में जानना उसका अधिकार होगा। भारत में यदि कोई स्‍पर्म डोनेट करना चाहे तो उसे मात्र दो सौ रुपये ही मिलते हैं। जबकि ब्रिटेन जैसे मुल्‍कों में स्‍पर्म डोनेशन का 2500 रुपये तक मिल जाता है।
स्‍पर्म डोनेशन की प्रक्रिया: बिजनेस करने वाली कंपनियां कॉलेज स्टूडेंट्स के साथ वर्कशॉप करती हैं। काउंसलिंग करती हैं। स्पर्म डोनेशन के सामाजिक पहलू के बारे में बताती हैं। जो स्टूडेंट तैयार होते हैं उन्हें मेडिकल टेस्ट देना होता है। अगर उन्हें कोई यौन या दूसरी बीमारी नहीं है, तो एक निश्चित अवधि का कॉन्ट्रैक्ट भरवाया जाता है। फिर उन्हें हफ्ते में दो बार कंपनी की लैब आकर स्पर्म डोनेट करना होता है। ब्लड डोनेशन की तरह यह एक सोशल कॉज है, इसके बदले कोई पैसा नहीं दिया जाता। स्टूडेंट दूर से आता है तो कंपनी ट्रांसपोर्ट खर्च दे देती हैं। डोनर से इकट्ठा करने के बाद स्पर्म को ‘-196 डिग्री सेल्सियस’ पर लिक्विड नाइट्रोजन में स्टोर किया जाता है। डोनर से स्‍पर्म इकट्ठा करने वाली कंपनियों के क्लाइंट आम तौर पर डॉक्टर या हॉस्पिटल होते हैं। उनके पास पुरुष में कम स्पर्म काउंट वाले केस आते हैं। डॉक्टर कंपनियों को जरूरतमंद के वजन, लंबाई और स्किन कलर जैसी जानकारी भेजते हैं। कंपनियां मेल खाता सैंपल डॉक्टरों को भेजती हैं। कंपनियां एक सैंपल 650 रुपए में बेचती हैं, डॉक्टर इसे 900 से 1200 रुपए में पेशेंट को देते हैं। डोनर की पहचान गुप्त रखी जाती है। उससे यह साइन भी करवाया जाता है कि अगर बाद में पता भी चल गया, तो उस औलाद पर डोनर का कोई हक नहीं होगा।
बिना इजाजत पति के स्‍पर्म डोनेशन के विरोध में आवाज उठाने वाली ब्रिटिश महिला की पहचान गुप्‍त रखी गई है। यह महिला बिजनेस करती है। उसका कहना है कि मेरे पति ने बिना मेरी मर्जी जाने अपना स्‍पर्म डोनेट कर दिया। जब मैंने क्लिनिक से संपर्क किया तो उनकी ओर से भी मुझे नहीं बताया गया कि वे मेरे पति का स्‍पर्म यूज कर रहे हैं। मुझे इस बात का डर है कि इस स्‍पर्म से होने वाला बच्‍चा बालिग होने के बाद मेरे परिवार, मेरी जिंदगी और मेरे बच्‍चों के लिए कोई मुसीबत न खड़ी कर दे। इस महिला का यह भी कहना है कि मेरे पति के स्‍पर्म से पैदा होने वाले बच्‍चों से मेरा इमोशनल अटैचमेंट होगा। मैं चाह कर भी उसे दूर नहीं कर पाऊंगी। इसलिए बिना पत्‍नी की सहमति के पति द्वारा स्‍पर्म डोनेट करने पर पाबंदी जरूरी है। इस महिला ने डायने ब्‍लड से भी मुलाकात की। ब्‍लड ने ही इस महिला के पति के स्‍पर्म से दो बच्‍चों को जन्‍म दिया है। उनके पति की मौत काफी पहले हो चुकी है। वह इन बच्‍चों के सहारे अपने पति की संपत्ति की कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। ब्रिटेन में स्‍पर्म डोनर को किसी प्रकार का भुगतान नहीं किया जाता है लेकिन उसे यात्रा और अन्‍य भुगतान के रूप में कुछ राशि दी जा सकती है। डोनर लाईसेंस प्राप्‍त क्लिनिक के माध्‍यम से ही स्‍पर्म डोनेट कर सकता है। स्‍पर्म डोनेट करने वाले आदमी की मर्जी के बिना उसका यूज नहीं किया जा सकता है। वह ऐन वक्‍त पर स्‍पर्म के यूज से मना कर सकता है। एचईएफए बोर्ड के पूर्व सदस्‍य और लंदन के होमर्टन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के डॉक्‍टर गुलाम बहादुर इस बात से खुश हैं कि कम से कम ऐसे इश्‍यू को उठाया तो गया। वह कहते हें कि जो आदमी स्‍पर्म दे रहा है, उसका उसकी पत्‍नी और परिवार पर क्‍या असर पड़ रहा है, उसे पूरी तरह इग्‍नोर नहीं किया जा सकता है।
भारत में वर्ष 2008 में संसद में एक विधेयक लाया गया था। कृत्रिम रूप से बच्चे पैदा करने की तकनीक से जुड़ा यह विधेयक संसद में आज तक पारित नहीं हो पाया। इसमें इस क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए कुछ कानून सुझाए गए थे। डॉक्‍टर भी देश में ऐसे कानून की मांग करते हैं, जिससे स्‍पर्म डोनेशन के साथ आईवीएफ तकनीक पर भी ध्‍यान रखा जा सके। स्‍पर्म डोनेट करने वालों की सूची रखने के लिए एक केंद्रीय संस्था का गठन होना चाहिए जो एक कानून के तहत काम करे।
भारत में स्‍पर्म डोनेशन का मुद्दा फिल्‍म का सब्‍जेक्‍ट भी बना। इस विषय पर बनी फिल्म ‘विकी डोनर’ लोकप्रिय रही। इस फिल्‍म ने देश के युवाओं में कई चीजों की जिज्ञासा जगाई। पहली, स्पर्म डोनेशन क्या है? और कैसे होता है? इस सवाल को लेकर। दूसरा, हाल ही में खबरें आईं कि कुछ लड़कियां फिल्म के प्रॉड्यूसर जॉन अब्राहम के स्पर्म चाहती हैं। बदले में जॉन ने भी कहा था कि ऐसे तो ‘फादर ऑफ द नेशन’ हो जाऊंगा।
'विकी डोनर' फिल्‍म के हीरो आयुष्मान कहते हैं कि स्पर्म डोनेशन के लिए युवाओं को आगे आना चाहिए और इसे वह पेशे के रूप में भी अपना सकते हैं। हमारे समाज में लोग इस बारे में बात नहीं करना चाहते मगर विदेशों में स्पर्म डोनेशन को बुरा नहीं मना जाता। अब हम आगे बढ़ रहे हैं ऐसे में हमें समय के साथ अपनी सोच भी बदलनी होगी और इससे किसी का नुकसान भी नहीं है। उनका कहना है कि उन्‍होंने असल जिंदगी में भी 2004 में रोडीज सीजन-2 की एक टास्क के लिए स्पर्म डोनेट किए हैं।
आपकी राय में क्‍या स्‍पर्म डोनेशन में पत्‍नी की मर्जी का खयाल रखना जरूरी है और स्‍पर्म को संपत्ति के रूप में ट्रीट किया जा सकता है? आप जो भी सोचते हों, नीचे कमेंट बॉक्‍स में टाइप कर सबमिट करें...

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

वह खून किस मतलब का, जिसमें उबाल नहीं


वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें उबाल का नाम नहीं । 
वह खून कहो किस मतलब का, आ सके देश के काम नहीं । 
वह खून कहो किस मतलब का, जिसमें जीवन, न रवानी है ! 
जो परवश होकर बहता है, वह खून नहीं, पानी है ! 
उस दिन लोगों ने सही-सही, खून की कीमत पहचानी थी । 
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में, मॉंगी उनसे कुरबानी थी ।
 बोले, स्वतंत्रता की खातिर, बलिदान तुम्हें करना होगा । 
तुम बहुत जी चुके जग में, लेकिन आगे मरना होगा । 
आज़ादी के चरणों में जो, जयमाल चढ़ाई जाएगी । 
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के, फूलों से गूँथी जाएगी । 
आजादी का संग्राम कहीं, पैसे पर खेला जाता है ? 
यह शीश कटाने का सौदा, नंगे सर झेला जाता है” 
यूँ कहते-कहते वक्ता की, ऑंखें में खून उतर आया ! 
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा, दमकी उनकी रक्तिम काया ! 
आजानु-बाहु ऊँची करके, वे बोले,”रक्त मुझे देना । 
इसके बदले भारत की, आज़ादी तुम मुझसे लेना ।” 
हो गई उथल-पुथल, सीने में दिल न समाते थे । 
स्वर इनकलाब के नारों के, कोसों तक छाए जाते थे । 
“हम देंगे-देंगे खून”, शब्द बस यही सुनाई देते थे । 
रण में जाने को युवक खड़े, तैयार दिखाई देते थे । 
 बोले सुभाष,” इस तरह नहीं, बातों से मतलब सरता है । 
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं, आकर हस्ताक्षर करता है ? 
इसको भरनेवाले जन को, सर्वस्व-समर्पण करना है। 
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन, माता को अर्पण करना है । 
लेकिन यह साधारण पत्र नहीं, आज़ादी का परवाना है । 
इस पर तुमको अपने तन का, कुछ उज्जवल रक्त गिराना है ! 
वह आगे आए जिसके तन में, भारतीय खून बहता हो। 
वह आगे आए जो अपने को, हिंदुस्तानी कहता हो ! 
वह आगे आए, जो इस पर, खूनी हस्ताक्षर करता हो ! 
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए, जो इसको हँसकर लेता हो ! 
सारी जनता हुंकार उठी- हम आते हैं, हम आते हैं ! 
माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्त चढ़ाते हैं ! 
साहस से बढ़े युवक उस दिन, देखा, बढ़ते ही आते थे ! 
चाकू-छुरी कटारियों से, वे अपना रक्त गिराते थे ! 
फिर उस रक्त की स्याही में, वे अपनी कलम डुबाते थे ! 
आज़ादी के परवाने पर, हस्ताक्षर करते जाते थे | 
उस दिन तारों ना देखा था, हिंदुस्तानी विश्वास नया। 
जब लिखा था महा रणवीरों ने, खून से अपना इतिहास नया ||

सोमवार, 2 जनवरी 2012

तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हारे अधिकारों के लिए अपना खून बहा दूँगा!

दोस्तों ! आपको पता है या नहीं मुझे पता नहीं है. मैंने दो बार चुनाव लड़े है. अगर आप मेरे सारे ब्लोगों की एक-एक पोस्ट को पढ़ें. तब आपको काफी जानकारी मिल जायेगी. हमने दो बार निर्दलीय चुनाव लड़े है. चुनाव चिन्ह "कैमरा" यानि तीसरी आँख से दोनों बार हारा हूँ. मगर अफ़सोस नहीं मुझे जितनी भी मुझे वोट मिले वो मेरी कार्यशैली और विचारधारा से मिली थी। इस बात खुशी है कि मैंने वोट लेने के लिए किसी को दारू नहीं पिलाई और न किसी को धमकाया या किसी प्रकार का लालच नहीं दिया. सब लोगों ने अपने विवेक से वोट दिया था.
मेरे पास भारत देश को लेकर बहुत बड़ी सोच (विचारधारा+योजना) है। जिसका प्रयोग करके 'सोने की चिडियाँ" कहलवाने वाले भारत देश को "अमरीका" जैसे बीसियों देशों से आगे ले जाकर खड़ा कर दूँगा. हाँ, मैं जैसे यहाँ (गूगल,फेसबुक) पर नियमों को लेकर बहुत सख्त हूँ. उसी प्रकार से "हिटलर" जैसा तानाशाही प्रधानमंत्री बन देश को सिर्फ दो साल चलाना चाहता हूँ. उसके बाद जनता की अनुमति के बाद अगले तीन साल देश की बागडोर संभालूँगा. आज मेरे पास कुछ निजी कारणों से ( जिनसे शायद आप नहीं अधिकत्तर समूह के सदस्य और दोस्त कहूँ या पाठक परिचित भी है) पार्टी बनाने के लिए एक चवन्नी भी नहीं है. मगर देखो ख्याब देश को चलाने का और प्रधानमंत्री बनने का देख रहा हूँ. इसको कहते हैं ना हैं...हौंसला. बस मुझे ऐसे ही सिर्फ फ़िलहाल पूरे देश से 545 "सिरफिरे" भूखें-नंगे लोगों की जरूरत है. जिनको मैं सिर्फ रोटी-कपड़ा-मकान दूँगा. उनके अंदर मेरे हिसाब से वो गुणवत्ता होनी चाहिए. जिसकी मुझे चाह है. फिर आप देखते रह जायेंगे. समृद्ध भारत देश का नाम पूरे विश्व में एक नया उदाहरण देने वाला के रूप में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा. अब आप बताये भूखे-नंगे सिरफिरे लोगों आप अपनी वोट डालने के लिए जायेंगे. घर पर बैठकर चाय की चुस्कियां लेते हुए टी.वी. पर फिल्म तो नहीं देखेंगे. अगर आप लोग देखते रह गए. तब 545 सिरफिरे चुनाव में हार जायेंगे और फिर कोई दल चुनाव जीतकर अपने स्विस के बैंक भर लेगा.
आज श्री अन्ना हजारे जी और बाबा रामदेव जी राजनीति में आने का कोई स्पष्ट इशारा नहीं दें रहें है. मेरे पास कुछ नहीं है.मगर अपने हौंसले के कारण बिना किसी सहारे के बिलकुल स्पष्ट इशारा देते हुए कह रहा हूँ कि-बिना गंदगी में उतरे गंदगी की सफाई नहीं की जा सकती है. मैंने दोनों व्यक्तियों के पास अपनी विचारधारा पहुँचाने के प्रयास किये मगर वहाँ से किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं मिली. श्री अन्ना हजारे जी को लिखा पत्र तो मेरे ब्लॉग पर भी है.


अब तीसरी बार फिर से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा हूँ. मार्च या अप्रैल 2012 में दिल्ली में एम्.सी.डी.(दिल्ली नगर निगम ) के चुनाव है. उसके लिए मेरे पहले के दो नारे 1. भ्रष्टाचार मिटाओ,भारत बचाओ! 2.तुम मेरा साथ दो, मैं तुम्हें समृद्ध भारत दूँगा ! तैयार है ही और इस बार का एक नया नारा "तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हारे अधिकारों के लिए अपना खून बहा दूँगा !" भी तैयार है. इसलिए दिसम्बर 2011 के बाद ब्लॉग,फेसबुक और ऑरकुट से कुछ समय के लिए अवकाश लें लूँगा.
मुझे अपनी वहकी हुई और पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा पार करती मेरी "कलम" के लिए मुझे फाँसी की भी सजा होती है।तब मैं अपनी फाँसी के समय से पहले ही फाँसी का फंदा चूमने के लिए तैयार रहूँगा और देश के ऊपर कुर्बान होने के लिए अपनी खुशनसीबी समझूंगा. इसके साथ ही मृत देह (शरीर) को दान करने की इच्छा है और अपनी हडियों की "कलम" बनवाकर देशहित में लिखने वाले पत्रकारों को बांटने की वसीयत करके जाऊँगा. ज्यादा जानकारी के लिए यहाँ पर(राजनीति) क्लिक करें और पढ़ें.
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

यह हमारी नवीनतम पोस्ट है: